Tuesday, 7 July 2015

किचन और वास्तु

वास्तु और फेंगशुई (चीन का वास्तु) दोनों ही शास्त्रों में अनेक टिप्स बताई गई हैं जिनसे हमारा जीवन सुखी और समृद्धिशाली बना रहता है। घर का हमारे भाग्य पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि घर में कोई वास्तु दोष है तो इसकी वजह से घर के सभी सदस्यों को परेशानी उठाना पड़ सकती है।
 
यदि आपके घर के मुख्य दरवाजे से किचन में रखा गैस का चूल्हा दिखता है तो यह अशुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह एक छोटी सी बात है लेकिन इसके प्रभाव काफी बड़े-बड़े होते हैं। क्योंकि ऐसा होने पर नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रीय हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो जाता है। फेंगशुई शास्त्र नकारात्मक और सकारात्मक एनर्जी के सिद्धांतों पर ही कार्य करता है।
 
इसी वजह से घर के मुख्य दरवाजे से यदि किचन में रखा गैस का चूल्हा दिखाई देता है तो चूल्हे का स्थान बदल देना चाहिए। यदि ऐसा संभव ना हो तो किचन में परदा लगाकर रखें।
 
साथ ही किचन के संबंध में कई अन्य मुख्य बातें जो ध्यान रखनी चाहिए-

  • उत्तर दिशा में रसोई और पूर्व दिशा में दरवाजा बंद होने पर भी ऊर्जा असंतुलित हो जाती है।
  • पूर्व का दरवाजा खोल देने और किचन दक्षिण-पूर्व में कर देने से ऊर्जा का प्रवाह नियमित और संतुलित हो जाता है।
  • किचन खुला और हवादार होना चाहिए।

कमरो का निर्माण कैसा हो?

कमरो का निर्माण कैसा हो?

 

कमरों का निर्माण में नाप महत्वपूर्ण होते हैं। उनमें आमने-सामने की दिवारें बिल्कुल एक नाप की हो, उनमें विषमता न हो। 
 
  • कमरों का निर्माण भी सम ही करें। 20-10, 16-10, 10-10, 20-16 आदि विषमता में ना करें जैसे 19-16, 18-11 आदि।

बेडरूम में शयन की क्या स्थिति।
 
  • बेडरूम में सोने की व्यवस्था कुछ इस तरह हो कि सिर दक्षिण मे एवं पांव उत्तर में हो।
  • यदि यह संभव न हो सिराहना पश्चिम में और पैर पूर्व दिशा में हो तो बेहतर होता है। 

रोशनी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि आंखों पर जोर न पड़े। बेड रूम के दरवाजे के पास पलंग स्थापित न करें। इससे कार्य में विफलता पैदा होती है। कम-कम से समान बेड रूम के भीतर रखे।

आरामदायक और साफ़-सुथरा घर

आरामदायक और साफ़-सुथरा घर

 
आज के ज़माने में बनने वाले आधुनिक घर कोल्ड और इमोशनलेस नहीं होते। दिखने में ये घर कोई म्यूजियम या डॉकटर का कलीनिक भी नहीं लगते। सो, आप घर में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं, तो ढेर सारी कुर्सियों और भारी पर्दे का तामझाम ख़त्म कर दीजिए। एक शांत, आरामदायक और साफ़-सुथरा घर बनाने के लिए फ़र्नीचर और झाड़-फ़ानूस का इस्तेमाल कम-से-कम करना चाहिए। इससे घर का सौंदर्य बढ़ेगा और मन मस्तिष्क पर भी सकारात्मक असर दिखाई देगा।
 
इन पर ध्यान दें
तरीक़ा: 
ऩशा जटिल नहीं होना चाहिए, ताकि उसे समझने में कोई दि़क़त न हो। साफ़-सफ़ाई और बेहतर रखरखाव की प्राथमिकता होनी चाहिए। वेल्वेट, साटिन, लिनन और सिल्क का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
 
स्लीक: 
रोगन की हुई अलमारी, ऊपरी सतह पर ग्रेनाइट का काम, चिकने पत्थर और स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल।
 
साफ़-सुथरा और व्यवस्थित
मॉडर्न होम में अनावश्यक चीज़ें नहीं मिलतीं। हालांकि कई बार अपनी मनपसंद चीज़ को आसानी से छोड़ना मुश्किल होता है, सो बेहतर होगा कि ऐसी चीज़ों को किसी अलमारी में रख दिया जाए। खुला-खुला और रोशन घर में ढेर सारे शीशे लगाने चाहिए। साफ़ शीशे वाली खिड़कियां हों, तो बढ़िया।
 
घर के अंदर की रोशनी को बेहद सावधानी से प्लेस करना चाहिए। गंदे लटकते तार और भड़कीले झाड़-फ़ानूस जैसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए। पीछे की ओर जड़ी हुई लाइट, सुंदर लैंप और डीमर्स भी हों, तो अच्छा है।
 
हो जिंदा दिली की बात
घर के इंटीरियर्स में हमेशा नेचुरल, सफ़ेद, मटमैले भूरे रंग का ही चयन करें। कमरे के सामानों का रंग एक-दूसरे से मैच करना चाहिए। ऐसा करने से घर बुझा हुआ महसूस नहीं होगा। ज़ेब्रा प्रिंट का कुशन, एक जीवंत लैंप और जोश से भरी दीवार ही आपके घर के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देगी।
 

जानें वास्तुशास्त्र के साधारण और मूल नियम..

जानें वास्तुशास्त्र के साधारण और मूल नियम..

किसी भी भवन का वास्तु सबसे प्रधान होता है। यही तय करता है कि इस भवन में रहने वालों के क्या दशा-दिशा होगी। इसलिए वास्तु शास्त्र में वर्णित कुछ साधारण नियमों को मानना ही चाहिए। 

वास्तु शास्त्र एक अत्यंत प्रमाणित प्राचीन विद्या है। लेकिन कई बार लाख सावधानी बरतने पर भी किसी भवन में कुछ वास्तु दोष रह जाते हैं। तो प्रस्तुत हैं वास्तु शास्त्र के मूल नियम और सावधानियां जिनका पालन कर सुख-समृद्धि से रहा जा सकता है। 

घर के मुख्य द्वार के सामने देवी-देवताओं के मंदिर नहीं होने चाहिए, न ही घर के पीछे मंदिर की छाया पड़नी चाहिए। 
मुख्य द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई की आधी होनी चाहिए। 

घर का मुख्य द्वार और पिछला द्वार एक सीध में कदापि नहीं होने चाहिए। मुख्य द्वार सदा साफ सुथरा रखें। 

मकान बनाते समय हवा एवं धूप का विशेष ध्यान रखना चाहिए। निर्माण इस तरह होना चाहिए कि हवा और धूप सर्दी और गर्मी में आवश्यकता के अनुरूप प्राप्त होती रहें। 

Monday, 6 July 2015

जब बनाएँ अपना घर...

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, पंच तत्व को अपने भवन के अधीन बनाना ही सच्चे अर्थों में वास्तु शास्त्र का रहस्य होता है। नए भवन निर्माण के समय कुछ मुख्य बातों पर ध्यान अवश्य दें :

1. जो प्लॉट त्रिकोण आकार का हो, उस पर निर्माण कराना हानिकारक होता है। 

2.  भवन निर्माण कार्य शुरू करने के पहले अपने आदरणीय विद्वान पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए। 

3.  भवन निर्माण में शिलान्यास के समय ध्रुव तारे का स्मरण करके नींव रखें। संध्या काल और मध्य रात्रि में नींव न रखें। 

4.  नए भवन निर्माण में ईंट, पत्थर, मिट्टी ओर लकड़ी नई ही उपयोग करना। एक मकान की निकली सामग्री नए मकान में लगाना हानिकारक होता है। 

5.  भवन का मुख्य द्वार सिर्फ एक होना चाहिए तो उत्तर मुखी सर्वश्रेष्ठ एवं पूर्व मुखी भी अच्छा होता है। मुख्य द्वार की चौखट चार लकड़ी की एवं दरवाजा दो पल्लों का होना चाहिए।

बेड रूम के लिए वास्तु टिप्स

 बेड रूम (शयन कक्ष) के स्थान और सामान के लिए वास्तु टिप्स|
बेडरूम आपका वह स्थान जहां आप  अपना सबसे ज्यादा समय बिताते हें| पुरे दिन काम करने के बाद यह स्थान आपके शरीर और दिमाग को आराम और शांति प्रदान करता है| यहाँ वास्तु शास्त्र के अनुसार शयन कक्ष के स्थान और चीजों के रखरखाव  के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं |
बेड रूम के लिए उपयुक्त दिशाये:
  • मुख्य  शयन कक्ष, जिसे मास्टर बेडरूम भी कहा जाता हें, घर के दक्षिण पश्चिम या उत्तर पश्चिम की ओर होना चाहिए | अगर घर में एक मकान की ऊपरी मंजिल है तो मास्टर ऊपरी मंजिल मंजिल के दक्षिण पश्चिम कोने में होना चाहिए |
  • बच्चों का कमरा उत्तर – पश्चिम या पश्चिम में होना चाहिए और मेहमानों के लिए कमरा (गेस्ट बेड रूम) उत्तर पश्चिम या उत्तर – पूर्व की ओर होना चाहिए | पूर्व दिशा में बने कमरा  का अविवाहित बच्चों या मेहमानों के सोने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है |
  • उत्तर – पूर्व दिशा में देवी – देवताओं का स्थान है  इसलिए इस दिशा में कोई बेडरूम नहीं  होना चाहिए | उत्तर – पूर्व में  बेडरूम होने से  धन की हानि , काम में रुकावट और बच्चों की शादी में देरी हो सकती  है |
  • दक्षिण – पश्चिम का बेडरूम  स्थिरता और महत्वपूर्ण मुद्दों को हिम्मत से हल करने में सहायता प्रदान करता है |
  • दक्षिण – पूर्व में शयन कक्ष अनिद्रा , चिंता , और वैवाहिक समस्याओं को जन्म देता है | दक्षिण पूर्व दिशा अग्नि कोण हें जो मुखरता और आक्रामक रवैये  से संबंधित  है | शर्मीले  और डरपोक बच्चे इस कमरे का उपयोग करें और विश्वास प्राप्त कर सकते हैं | आक्रामक और क्रोधी स्वभाव के  जो लोग है इस कमरे में ना रहे  |
  • उत्तर – पश्चिम दिशा वायु द्वारा शासित है और आवागमन से  संबंधित  है | इसे विवाह योग्य लड़किया के शयन कक्ष के लिए एक अच्छा माना गया है | यह मेहमानों के शयन कक्ष लिए भी एक अच्छा स्थान है |
  • शयन कक्ष घर के मध्य भाग में नहीं होना चाहिए, घर के मध्य भाग को वास्तु में बर्हमस्थान  कहा जाता है | यह बहुत  सारी ऊर्जा को आकर्षित करता  है जोकि  आराम और नींद के लिए लिए बने शयन कक्ष के लिए उपयुक्त नहीं है |
बेड रूम में रखे सामान के लिए उपयुक स्थान:
  •  सोते समय एक अच्छी नींद के  नंद के लिए सिर पूर्व या दक्षिण की ओर होना  चाहिए |
  • वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार, पढ़ने और लिखने की  जगह पूर्व या शयन कक्ष के पश्चिम की ओर होनी चाहिए  | जबकि पढाई करते समय मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए |
  • ड्रेसिंग टेबल के साथ दर्पण पूर्व या उत्तर की दीवारों पर तय की जानी चाहिए |
  • अलमारी शयन कक्ष के उत्तर पश्चिमी या दक्षिण की ओर होना चाहिए | टीवी, हीटर और एयर कंडीशनर को दक्षिण पूर्वी के कोने में स्थित होना चाहिए |
  • बेड रूम के साथ लगता बाथरूम, कमरे के पश्चिम या उत्तर में होना चाहिए |
  • दक्षिण – पश्चिम , पश्चिम कोना  कभी खाली नहीं रखा जाना चाहिए|
  • यदि आप कोई सेफ या तिजोरी, बेड रूम में रखना चाहे तो उसे दक्षिण कि दिवार के साथ रख सकते हें, खुलते समय उसका मुंह धन की दिशा, उत्तर की तरफ खुलना चाहिए|

वास्तु के अनुसार ऑफिस की सज्जा

आज की जीवन शैली में हमारे दिन का सबसे बड़ा हिस्सा ऑफिस में बीतता है। ऑफिस के वातावरण और संबंधों का हमारे जीवन की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। ऑफिस की सज्जा और वास्तु का बहुत महत्व है। इसका हमारी कार्यक्षमता, खुशी और सामान्य स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।ऑफिस की सज्जा की योजना बनाते वक्त स्वयं की अभिरुचियों के साथ ग्राहक की कार्यात्मक और सौन्दर्यात्मक जरूरतों, उपलब्ध जगह की संभावनाओं का ध्यान रखना पड़ता है। ऑफिस में लोगों के बैठने फर्नीचर आलमारी आदि बेडरूम और पैंट्री की जगहें, और उन सभी जगहों के बीच सुलभ आवाजाही के लिए और सीढ़ियों और आग से सुरक्षा के स्थान तक पहुंचने की पर्याप्त जगह होनी चाहिए। ऑफिस की सज्जा के लिए हमेशा लम्बी अवधि की योजना बनानी चाहिए, भले वर्तमान में उस योजना के एक छोटे हिस्से को लागू करना हो, जैसे-जैसे जरूरत और फंड बढ़े। मास्टर प्लान ऐसी होनी चाहिए कि आज जो भी नई चीज आप लगाएं उसे तब भी हटाना न पड़े जब आप ऑफिस बढ़ाएं।ऑफिस के अलग-अलग घटकों के बारे में अगर हम मूलभूत सिद्धांतों का ध्यान रखें तो मास्टर प्लान की परिकल्पना करने में मदद मिलेगी।
1) ग्राहक पर सबसे पहले रिसेप्शन की जगह का प्रभाव पड़ता है। सज्जा अच्छी होनी चाहिए, कम्पनी की अभिरूचि और स्टाइल का प्रतिनिधित्व करने वाली। कम्पनी के प्रोडक्ट और सर्विसेज के मॉडल और विजुअल प्रदर्शित किए जा सकते हैं। जगह की डिजायन ऐसी होनी चाहिए कि रिसेप्शनिस्ट आते और जाते लोगों पर दूर तक नजर रख सके।
2) कांफ्रेंस रूम प्रवेश से आसानी से पहुंच में होनी चाहिए। टॉयलट तक पहुंच सुलभ होनी चाहिए। प्रेजेंटेशन के सामान जैसे स्क्रीन, टीवी, वीडियो मॉनिटर, ब्लैक बोर्ड, फ्लिप चार्ट तारतम्य में लगे होने चाहिए और फर्नीचर इस तरह लगे होने चाहिए कि सदस्य आसानी से कम्यूनिकेट कर सकें। दिवारों और प्रेजेंटेशन के बैकग्राउंड के रंग शान्त और न्यूट्रल प्रकार के होने चाहिए, इससे सामूहिक चर्चा का माहौल बनता है।
3) लाइटिंग डिजाइन को जीवंत बनाती है। लाइटिंग की व्यवस्था में एक संतुलित तड़क-भड़क से नीरसता नहीं रह जाती। इस बात का ध्यान होना चाहिए कि आंखों पर जोर न पड़े। प्रत्येक सीट और जगह के लिए यथासंभव अलग लाइट और स्विच होने से बचत का ध्यान रहेगा।
4) फ्लोरिंग मैटेरियल का चयन संबंधित जगह के काम को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसमें टिकाउपन, रंग, लागत और रखरखाव का ध्यान रखा जाता है।
5) स्टोरेज की नई-नई डिवाइस बाजार में हैं। सेल्फ, कपबोर्ड, फाइलिंग कैबिनेट, ड्रावर यूनिट आदि के बारे में निर्णय लेने से पूर्व बाजार में इनके पूरे रेंज को जरूर देखें और ठीक-ठीक अपनी जरूरत के अनुसार चयन करें।

वास्तुशास्त्र मुख्य सैद्धांतिक बातें

इस अध्याय में हम वास्तुशास्त्र की प्रमुख सैद्धांतिक बातों को बतला रहे हैं । इन पर अमल करके बिना तोड़फोड़ किए ही वास्तुदोषों से छुटकारा पाकर जीवन में सुख-समृद्धि लाई जा सकती है ।
  • घर का मुख्य द्वार किसी अन्य के घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने न बनाएं ।
  • घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाएं और आंगन का कुछ भाग मिट्टी वाला भी रखें ।
  • ईशान कोण किसी भी मकान का मुख कहलाता है । अतः इस कोण को सदैव पवित्र रखना चाहिए ।
  • रसोई घर मुख्य द्वार के ठीक सामने न बनाएं । ऐसा होने से अतिथियों का आवागमन होता रहता है ।
  • पूजागृह, शौचालय व रसोईघर पास-पास न बनवाएं ।
  • विद्युत उपकरण आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में रखें ।
  • घर में टूटे-फूटे बतरन, टूटा दर्पण, टूटी चारपाई न रखें । इनमें दरिद्रता का वास होता है । रात्रि में बर्तन झूठे न रखें ।
  • दर्पण, वास बेसिन व नल ईशान कोण में रखें । सैप्टिक टैंक वायव्य कोण या आग्नेय कोण में रखें ।
  • किसी भी मकान में दरवाजे व खिड़कियां ग्राउण्ड फ्लोर में ही अधिक रखें । उसके बाद प्रथम, द्वितीय मंजिलों में कम करते जाएं ।
  • बच्चों के अध्ययन की दिशा उत्तर या पूर्व होती है । यदि बच्चे इन दिशाओं की ओर मुंह करके अध्ययन करें तो स्मृति बनी रहती है
  • घर में पोछा लगाते समय पानी में सांभर नमक या सेंधा नमक डाल लें । इससे कीटाणु पैदा नहीं होंगे ।
  • कभी भी बीम या शहतीर के नीचे न बैठें । इससे देह पीड़ा (खासकर सिर दर्द) होती है ।
  • जल निकास उत्तर-पूर्व में रखें ।
  • यदि घर में घड़ियां हैं और वे ठीक से नहीं चल रही हैं तो उन्हें ठीक करा लें । घड़ी गृहस्वामी के भाग्य को तेज या मंदा करती है ।
  • पूजागृह व शौचालय सीढ़ियों के नीचे न बनाएं ।
  • वास्तुदोष निवारण का अतिसुगम उपाय यह है कि घर में श्रीरामचरित-मानस के नौ पाठ अखंड रूप से करवाएं ।
  • शयन करते समय सिरहाना पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर रखने से धन व आयु की बढ़ोत्तरी होती है । उत्तर की ओर सिरहाना रखने से आयु की हानि होती है ।
  • पूर्व की ओर सिरहाना रखने से विद्या, दक्षिण की ओर रखने से धन व आयु की बढोत्तरी होती है । उत्तर की ओर सिरहाना रखने से आयु की हानि होती है ।
  • अन्‍नागार, गौशाला, रसोईघर, गुरू स्थल व पूजागृह जहां हो उसके ऊपर शयनकक्ष न बनाएं । यदि वहां शयनकक्ष होगा तो धन-संपदा का नाश हो जाएगा ।
  • सवेरे पूर्व दिशा में व रात्रि में पश्‍चिम दिशा में मल-मूत्र विसर्जन करने से आधीसीसी का रोग होता है ।
  • घर में बड़ी मूर्ति नहीं रखनी चाहिए । यदि मूर्ति रखनी है तो वह एक बित्ते जितनी ही होनी चाहिए । अर्थात बारह अंगुल जितनी बड़ी हो ।
  • घर के पूजन कक्ष में किसी भी देवता की एक से अधिक मूर्ति न रखें ।
  • पूर्व की ओर मुंह करके भोजन करने से आयु, दक्षिण की ओर मुंह करके भोजन करने से प्रेत, पश्‍चिम की ओर मुंह करके भोजन करने से रोग व उत्तर की ओर मुंह करके भोजन करने से धन व आयु की प्राप्ति होती है ।
  • घर में सात्त्विक प्रवृत्ति के पक्षियों के जोड़े वाला चित्र रखें । इससे परिवार का वातावरण माधुर्यपूर्ण रहेगा ।
  • घर के मुख्य द्वार पर नीबू या संतरे का पौधा लगाएं । ये पौधे संपदा बढ़ाने वाले होते हैं ।
  • घर के आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में सिक्‍कों वाला धात्विक कटोरा अर्थात्‌ धातु का कटोरा रखें * और उसमें ऐसे सिक्‍के जो मार्ग में पड़े मिले हों डालते जाएं । ऐसा करने से घर में आकस्मिक रूप से धनागम होने लगेगा ।
  • घर के मुख्य द्वार पर बाहर की ओर पौधे लगाएं ।
  • परिवार के सदस्यों में माधुर्य भाव बना रहे, इसके लिए सभी सदस्यों का एक हंसमुख सामूहिक चित्र ड्राइंगरूम में लगाना चाहिए ।
  • घर में झाडू व पोंछा खुले स्थान पर न रखें । खासकर भोजन कक्ष में झाडू नहीं रखनी चाहिए । इससे अन्‍न व धन की हानि होती है । रात्रि में झाडू को उलटी करके घर के बाहर मुख्य दीवार के सामने रखने से चोरों को भय नहीं रहता ।
  • पति-पत्‍नी में माधुर्य संबंधों के लिए शयनकक्ष के नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्‍चिम) में प्रेम व्यवहर करते पक्षियों का जोड़ा रखना चाहिए ।
  • शौच से निवृत्त होने के बाद शौचालय का द्वार बंद कर दें । यह नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है ।
  • दिन में एक समय परिवार के सभी सदस्यों को एकसाथ भोजन करना चाहिए । इससे परस्पर संबंधों में प्रगाढ़ता आती है ।

वास्‍तुशास्‍त्र के कुछ नि‍यम

प्रापर्टी, प्‍लॉट या मकान खरीदते समय वास्‍तु शास्‍त्र के अनुसार कुछ बातों का ध्‍यान रखना आपके लि‍ए लाभदायक हो सकता है। 

1. प्‍लॉट खरीदते समय उस पर खड़े अनुभव करें। यदि‍ आपको सकारात्‍मक अनुभूति‍ हो तो ही वह प्‍लॉट खरीदें अन्‍यथा न खरीदें। 

2. अगर आप बना हुआ मकान खरीद रहें हैं तो पता लगा लें कि‍ वहाँ पहले रह चुका परि‍वार खुशहाल परि‍वार है या नहीं। 

3. दरि‍द्रता या कि‍सी मजबूरी के चलते बेचे जाने वाले मकान या प्‍लॉट को ना ही खरीदें तो बेहतर है। और अगर लेना ही है तो उसमें सावधानी बरतें। 

4. जीर्ण-शीर्ण अवस्‍था वाले भवन न खरीदें। 

5. मकान या प्‍लॉट को खरीदने से पहले जान लें कि‍ वहाँ की भूमि‍ उपजाऊ है या नहीं। अनुपजाऊ भूमि‍ पर भवन बनाना वास्‍तु शास्‍त्र में उचि‍त नहीं माना जाता है।

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण का महत्व

जमीन के उत्तर-पूर्व कोने को ईशान कोण कहा जाता है।

यह माना जाता है कि इस कोण पर देवताओं और आध्यात्मिक शक्ति का वास रहता है। इसलिए यह घर का सबसे पवित्र कोना होता है।
  • भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। चूंकि भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है इसीलिए इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है।
  • वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर और पूर्व दिशा शुभ मानी जाती हैं।
  • इन दोनों दिशाओं के मिलने वाले कोण पर उत्तर-पूर्व क्षेत्र बनता है इसी वजह से यह घर या प्लाट का यह सबसे शुभ तथा ऊर्जा के स्रोत का शक्तिशाली कोना माना जाता है।
  • यहां दैवी शक्तियां इसलिए भी बढ़ती हैं क्योंकि इस क्षेत्र में देवताओं के गुरु बृहस्पति और मोक्ष कारक केतु का भी वास रहता है।

वास्तुशास्‍त्र की आठ प्रमुख दिशाएं एवं उनक महत्व

वास्तुशास्‍त्र में आठ प्रमुख दिशाओं का जिक्र आता है, जो मनुद्गय के समस्त कार्य-व्यवहारों को प्रभावित करती हैं। इनमें से प्रत्येक दिशा का अपना-अपना विशेष महत्व है। अगर आप घर या कार्यस्थल में इन दिशाओं के लिए बताए गए वास्तु सिद्धांतों का अनुपालन करते हैं, तो इसका सकारात्मक परिणाम आपके जीवन पर होता है। इन आठ दिद्गााओं को आधार बनाकर आवास/कार्यस्थल एवं उनमें निर्मित प्रत्येक कमरे के वास्तु विन्यास का वर्णन वास्तुशास्‍त्र में आता है।

वास्तुशास्‍त्र कहता है कि ब्रहांड अनंत है। इसकी न कोई दशा है और न दिशा। लेकिन हम पृथ्वीवासियों के लिए दिद्गााएं हैं। ये दिद्गााएं पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाने वाले गृह सूर्य एवं पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र पर आधारित हैं। यहां उल्लेखनीय है कि आठों मूल दिद्गााओं के प्रतिनिधि देव हैं, जिनका उस दिशा पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इसका विस्तृत वर्णन नीचे किया गया है।

यहां हम आठ मूलभूत दिशाओं और उनके महत्व के साथ-साथ प्रत्येक दिशा के उत्तम प्रयोग का वर्णन कर रहे हैं। चूंकि वास्तु का वैज्ञानिक आधार है, इसलिए यहां वर्णित दिशा-निर्देश पूर्णतः तर्क संगत हैं।

पूर्व दिशा :
इस दिशा के प्रतिनिधि देवता सूर्य हैं। सूर्य पूर्व से ही उदित होता है। यह दिशा शुभारंभ की दिशा है। भवन के मुखय द्वार को इसी दिद्गाा में बनाने का सुझाव दिया जाता है। इसके पीछे दो तर्क हैं। पहला- दिशा के देवता सूर्य को सत्कार देना और दूसरा वैज्ञानिक तर्क यह है कि पूर्व में मुखय द्वार होने से सूर्य की रोशनी व हवा की उपलब्धता भवन में पर्याप्त मात्रा में रहती है। सुबह के सूरज की पैरा बैंगनी किरणें रात्रि के समय उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को खत्म करके घर को ऊर्जावान बनाएं रखती हैं।

उत्तर दिशा :
इस दिशा के प्रतिनिधि देव धन के स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा ध्रूव तारे की भी है। आकाश में उत्तर दिशा में स्थित धू्रव तारा स्थायित्व व सुरक्षा का प्रतीक है। यही वजह है कि इस दिशा को समस्त आर्थिक कार्यों के निमित्त उत्तम माना जाता है। भवन का प्रवेश द्वार या लिविंग रूम/ बैठक इसी भाग में बनाने का सुझाव दिया जाता है। भवन के उत्तरी भाग को खुला भी रखा जाता है। चूंकि भारत उत्तरी अक्षांश पर स्थित है, इसीलिए उत्तरी भाग अधिक प्रकाशमान रहता है। यही वजह है कि उत्तरी भाग को खुला रखने का सुझाव दिया जाता है, जिससे इस स्थान से घर में प्रवेश करने वाला प्रकाश बाधित न हो।

उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) :
यह दिशा बाकी सभी दिशाओं में सर्वोत्तम दिशा मानी जाती है। उत्तर व पूर्व दिशाओं के संगम स्थल पर बनने वाला कोण ईशान कोण है। इस दिशा में कूड़ा-कचरा या शौचालय इत्यादि नहीं होना चाहिए। ईशान कोण को खुला रखना चाहिए या इस भाग पर जल स्रोत बनाया जा सकता है। उत्तर-पूर्व दोनों दिशाओं का समग्र प्रभाव ईशान कोण पर पडता है। पूर्व दिशा के प्रभाव से ईद्गाान कोण सुबह के सूरज की रोद्गानी से प्रकाशमान होता है, तो उत्तर दिशा के कारण इस स्थान पर लंबी अवधि तक प्रकाश की किरणें पड ती हैं। ईशान कोण में जल स्रोत बनाया जाए तो सुबह के सूर्य कि पैरा-बैंगनी किरणें उसे स्वच्छ कर देती हैं।

पश्चिम दिशा :
यह दिशा जल के देवता वरुण की है। सूर्य जब अस्त होता है, तो अंधेरा हमें जीवन और मृत्यु के चक्कर का एहसास कराता है। यह बताता है कि जहां आरंभ है, वहां अंत भी है। शाम के तपते सूरज और इसकी इंफ्रा रेड किरणों का सीधा प्रभाव पश्चिमी भाग पर पड ता है, जिससे यह अधिक गरम हो जाता है। यही वजह है कि इस दिद्गाा को द्गायन के लिए उचित नहीं माना जाता। इस दिशा में शौचालय, बाथरूम, सीढियों अथवा स्टोर रूम का निर्माण किया जा सकता है। इस भाग में पेड -पौधे भी लगाए जा सकते हैं।

उत्तर- पश्चिम (वायव्य कोण) :
यह दिशा वायु देवता की है। उत्तर- पश्चिम भाग भी संध्या के सूर्य की तपती रोशनी से प्रभावित रहता है। इसलिए इस स्थान को भी शौचालय, स्टोर रूम, स्नान घर आदी के लिए उपयुक्त बताया गया है। उत्तर-पद्गिचम में शौचालय, स्नानघर का निर्माण करने से भवन के अन्य हिस्से संध्या के सूर्य की उष्मा से बचे रहते हैं, जबकि यह उष्मा द्गाौचालय एवं स्नानघर को स्वच्छ एवं सूखा रखने में सहायक होती है।

दक्षिण दिशा :
यह दिशा मृत्यु के देवता यमराज की है। दक्षिण दिशा का संबंध हमारे भूतकाल और पितरों से भी है। इस दिशा में अतिथि कक्ष या बच्चों के लिए शयन कक्ष बनाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में बॉलकनी या बगीचे जैसे खुले स्थान नहीं होने चाहिएं। इस स्थान को खुला न छोड़ने से यह रात्रि के समय न अधिक गरम रहता है और न ज्यादा ठंडा। लिहाजा यह भाग शयन कक्ष के लिए उत्तम होता है।

दक्षिण- पश्चिम (नैऋत्य कोण) :
यह दिशा नैऋुती अर्थात स्थिर लक्ष्मी (धन की देवी) की है। इस दिद्गाा में आलमारी, तिजोरी या गृहस्वामी का शयन कक्ष बनाना चाहिए। चूंकि इस दिशा में दक्षिण व पश्चिम दिशाओं का मिलन होता है, इसलिए यह दिशा वेंटिलेशन के लिए बेहतर होती है। यही कारण है कि इस दिशा में गृह स्वामी का द्गायन कक्ष बनाने का सुझाव दिया जाता है। तिजोरी या आलमारी को इस हिस्से की पश्चिमी दीवार में स्थापित करें।

दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) :
इस दिशा के प्रतिनिध देव अग्नि हैं। यह दिशा उष्‍मा, जीवनशक्ति और ऊर्जा की दिशा है। रसोईघर के लिए यह दिशा सर्वोत्तम होती है। सुबह के सूरज की पैराबैंगनी किरणों का प्रत्यक्ष प्रभाव पडने के कारण रसोईघर मक्खी-मच्छर आदी जीवाणुओं से मुक्त रहता है। वहीं दक्षिण- पश्चिम यानी वायु की प्रतिनिधि दिशा भी रसोईघर में जलने वाली अग्नि को क्षीण नहीं कर पाती।

वास्तुशास्त्र का उदभव ‘वैदिक शास्त्रों में वास्तु का अर्थ है गृह निर्माण योग्य भूमि

अर्थात् जिस भूमि पर अधिक सुरक्षा व सुविधा प्राप्त हो सके, इस प्रकार के मकान को भवन व महल आदि जिसमें मनुष्य रहते हैं या काम करते हैं वास्तु कहते है।
इस ब्रह्मण्ड में सबसे शाक्तिशाली प्राकृति है क्योंकि यही सृष्टि का विकास करती है।
यही ह्रास प्रलय, नाशा करती है।
वास्तु शास्त्र इन्हीं प्राकृतिक शाक्तियों का अधिक प्रयोग कर अधिकतम सुरक्षा व सुविधा प्रदान करता है।

ये प्राकृतिक शाक्तियां अनवरत चक्र से लगातार चलती रही है।

(1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शाक्ति, (3) सौर ऊर्जा पृथ्वी में दो प्रकार की प्रावृति शक्तियां हैं।
(1) गुरूत्व बल, (2) चुम्बकीय शक्ति गुरूत्व :- गुरूत्व का अर्थ है पृथ्वी की वह आकर्षण शक्ति जिससे वह अपने ऊपर

आकाश में स्थित वजनदार वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेती है।
उदाहरण के लिए थर्मोकोल व पत्थर का टुकडा। ऊपर से गिराने पर थर्मोकोल देरी से धरती पर आता है जबकि ठोस पत्थर जल्दी आकर्षित करती है। इसी आधार पर मकान के लिए ठोस भूमि प्रशांत मानी गई है।

चुम्बकीय शक्ति :-
यह प्राकृति शक्ति भी निरन्तर पुरे ब्राह्मण्ड में संचालन करती है। सौर परिवार के अन्य ग्रहों के समान पृथ्वी अपनी कक्षा और अपने पर घुमने से अपनी चुम्बकीय शक्ति को अन्त विकसित करती है। हमारा पुरा ब्रह्मण्ड एक चुम्बकीय क्षेत्र है। इसके दो ध्रुव है। एक उत्तर, दूसरा दक्षिण ध्रुव। यह शक्ति उत्तरसे दक्षिण की ओर चलती है।

सौर ऊर्जा :-
पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है। यह एक बडी ऊर्जा का केन्द्र है। सौर ऊर्जा पूर्व से पश्चिम कार्य करती है। पंच महाभूतों का महत्व दर्शन, विज्ञान एवं कला से संबंधित प्राय सभी शास्त्र यह मानते है कि मानव सहित सभी प्राणी पंचमहाभूतों से बने हैं। अत: मानव का तन, मन एवं जीवन इन महाभूतों के स्वत: स्फूर्त और इनके असन्तुलन से निश्क्रिय सा हो जाता है।

वास्तु शास्त्र में इन्हीं पॉंच महाभूतों का अनुपात में तालमेल बैठाकर प्रयोग कर जीवन में चेतना का विकास संभव है।
(1) क्षिति (2) जल (3) पावक (4) गगन (5) समीरा अर्थात् , पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।
धरती :-
धरती के बिना जीवन एवं जीवन की गतिविधियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
जल :-
जीवन के लिए जल की आवश्यकता होती है।
जल ही जीवन है। इस सृष्टि से यह शास्त्र भवन निर्माण हेतु कुआं, नलकूप, बोरिंग, नल, भूमिगत टंकी, भवन के ऊपर पानी की टंकी आदि का विचार करना।
अग्नि :-
जीवन में पृथ्वी, जल के बाद अग्नि का क्रम आता है। जिस प्रकार मानव जीवन में जब तक ताप है, गर्मी है तब तक जीवन है इसके ठण्डा पडते ही जीवन समाप्त हो जाता है। अग्नि तत्व प्रकाश के रूप में ऊर्जा का संचार कारता है।
वायु :-
वायु की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, वायु के बिना जीवन संभव नहीं है। तब तक वायु सक्रिय व शुद्ध है ? तब तक जीवन है।
आकाश :-
पंचमहाभूतों में आकाश का महत्व कम नहीं है। यह चारों तत्वों में सब से बड़ा और व्यापक है। इसका विस्तार अनन्त है। आकाश ही न होता तो जीवन ही नहीं होता।
वास्तु और विज्ञान सूर्य की ऊर्जा को अधिक समय तक भवन में प्रभाव बनाए रखने के लिए ही दक्षिण और पश्चिम भाग की अपेक्षा पूर्व एवं उत्तर के भवन निर्माण तथा उसकी सतह को नीचा रखे जाने का प्रयास किया जाता है।

प्रात : कालीन सूर्य रशिमयों में अल्ट्रा वॉयलेट रशिमयों से ज्यादा विटामिन ”डी” तथा विटामिन ”एफ” रहता है

। वास्तु शास्त्र में भवन का पूर्वी एवं उत्तरी क्षेत्र खुला रखने का मुख्य कारण यही है कि प्रात:कालीन सूर्य रशिमयों आसानी से भवन में प्रविष्ट हो सकें। इसी प्रकार दक्षिण और पश्चिम के भवन क्षेत्र को ऊचां रखने या मोटी दीवार बनाने के पीछे भी वास्तु शास्त्र का एक वैज्ञानिक तथ्य है। क्योकि जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिण दिशा में करती है तो उस समय पृथ्वी विशेष कोणीय स्थिति लिए होती है। अतएव इस भाग में अधिक भार होने से सन्तुलन बना रहता है और सूर्य के अति ताप से बचा जा सकता है। इस प्रकार इस भाग में गर्मियों में ठण्डक और सर्दियों में गरमाहट बनी रहती है।
खिड़कियों और दरवाजें के बारे में भी वास्तु शास्त्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता है। इसलिए भवन के दक्षिण या पश्चिम भाग में पूर्व या उत्तर की अपेक्षा छोटे एवे कम दरवाजे खिड़कियाँ रखने के लिए कहा जाता है, ताकि गर्मियों में इस क्षेत्र में कमरों में ठण्डक तथा सर्दियों में गरमाहट महसूसकी जा सके। वास्तु शास्त्र के अनुसार रसोईघर को आगनेय यानी दक्षिण-पूर्व दिशा में रखा जाना चाहिए।
इसका वैज्ञानिक आधार यह है कि इस क्षेत्र में पूर्व से विटामिन युक्त प्रात:कालीन सूर्य की रशिमयों तथा दक्षिण से शुद्ध वायु का प्रवेश होता है, क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है।
अत: इस कोण की स्थिति के कारण भवन के इस भाग को विटामिन ”डी” एवं विटामिन ”एफ” से युक्त अल्ट्रा वॉयलेट किरणें अधिक समय तक मिलती हैं।
इससे रसोईघर में रखी खाद्य सामग्री लम्बे समय तक शुद्ध रहती है। वास्तु शास्त्र पूजाघर या आराधना स्थल को उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में बनाने के लिए भी वैज्ञानिक तथ्य देता है। पूजा के समय हमारे शरीर पर अपेक्षाकृत कम वस्त्र या पतले वस्त्र होते हैं, ताकि प्रात:कालीन सूर्य रशिमयों के माध्यम से विटामिन ‘डी` हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से प्रविष्ट हो सके।
उत्तरी क्षेत्र में हमें पृथ्वी की चुम्बकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव प्राप्त होता है।
इस क्षेत्र को सबसे अधिक पवित्र माना गया है, क्योंकि इसके द्धारा अंतरिक्ष से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है।
यही मुख्य कारण है कि मंदिरों एवं साधना स्थलों के प्रवेश द्वार इन्हीं दिशाओं में बनाए जाते हैं।
हमारे वायुमण्डल में 20 प्रकार के मैग्नेटिक फील्ड पाए जाते हैं वैज्ञानिकों के मतानुसार, इनमें से चार प्रकार के मैग्नेटिक फील्ड हमारी शारीरिक गतिविधियों को ऊर्जा प्रदान करने में अत्यंत सहायक होते हैं।
वास्तु शास्त्र ने भी अपने क्रिया-कलापों में इनकी व्यापक सहायता ली है।
बिना तोड़-फोड़ के वास्तु सुधार आजकल पूर्व निर्मित गृह को वास्तु अनुसार करने हेतु तरह-२ की सलाह दी जाती है जो ठीक जो है लेकिन उसको कार्य रूप देना हर परिवार या इंसान के लिए एक कठिन कार्य हो गया है।
जैसा कि विज्ञान ने आज बहुत ज्यादा उन्नति कर ली है उसी तरह वास्तु विज्ञान में भी आज बिना किसी तोड़-फोड़ किए उसमें सुधार करने के नए-नए तरीके सुझाये जा सकते हैं।

उपरोक्त दोषों के मूल निवारक इस प्रकार हैं :-

1 वास्तु दोष निवारक यन्त्र।
2 सिद्ध गणपति स्थापना।
3 पिरामिड यन्त्र। 4 हरे पौधे। 5 दर्पण। 6 प्रकाश। 7 शुभ चिन्ह। 8 जल। 9 क्रिस्टल बाल। 10 रंग। 11 घंटी। 12 बांसुरी । 13 स्वास्तिक यन्त्र। 14 वास्तुशांति हवन। 15 मीन। 16 शंख। 17 अग्निहोत्र।

हमारे पहले वास्तु दोषों को समझना होगा ये निम्न प्रकार के होते हैं :-
1 भूमि दोष :- भूमि का आकार, ढ़लान उचित न होगा। भूखण्डकी स्थिति व शल्य दोष इत्यादि। भवन निर्माण दोष :- पूजा घर, नलकूप, (जल स्त्रोत), रसोई घर, शयनकक्ष, स्नानघर, शौचालय इत्यादि का उचित स्थान पर न होना।
भवन साज-सज्जा दोष :- साज-सज्जा का सामान व उचित चित्र सही स्थान पर न रखना।

४ आगुन्तक दोष :- यह नितांत सत्य है कि आगुन्तक दोष भी कभी-
2 आदमी की प्रगति में बाघा उत्पन्न करता है वह उसको हर तरह से असहाय कर देता है।
इस दोष से बचने हेतु मुख्य द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना की जा सकती है। उपरोक्त दोषों को किसी भी वास्तु शास्त्री से सम्पर्क कर आसानी से जाना जा सकता है।

वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांत

वास्तुशास्त्र जीवन के संतुलन का प्रतिपादन करता है। यह संतुलन बिगड़ते ही मानव एकाकी और समग्र रूप से कई प्रकार की कठिनाइयों और समस्याओं का शिकार हो जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पंचमहाभूतों- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के विधिवत उपयोग से बने आवास में पंचतत्व से निर्मित प्राणी की क्षमताओं को विकसित करने की शक्ति स्वत: स्फूर्त हो जाती है।हमारे ऋषियों का सारगर्भित निष्कर्ष है, 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।' जिन पंचमहाभूतों से पूर्ण ब्रह्मांड संरचित है उन्हीं तत्वों से हमारा शरीर निर्मित है और मनुष्य की पांचों इंद्रियां भी इन्हीं प्राकृतिक तत्वों से पूर्णतया प्रभावित हैं। आनंदमय, शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन के लिए शारीरिक तत्वों का ब्रह्मांड और प्रकृति में व्याप्त पंचमहाभूतों से एक सामंजस्य स्थापित करना ही वास्तुशास्त्र की विशेषता है।

पृथ्वी मानवता और प्राणी मात्र का पृथ्वी तत्व (मिट्टी) से स्वाभाविक और भावनात्मक संबंध है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। इसमें गुरूत्वाकर्षण और चुम्बकीय शक्ति है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि पृथ्वी एक विशालकाय चुम्बकीय पिण्ड है। एक चुम्बकीय पिण्ड होने के कारण पृथ्वी के दो ध्रुव उत्तर और दक्षिण ध्रुव हैं। पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी, सभी जड़ और चेतन वस्तुएं पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी अनेक तत्वों और अनेक प्रकार के खनिजों जैसे लोहा, तांबा, इत्यादि से भरपूर है उसी प्रकार हमारे शरीर में भी अन्य धातुओं के अलावा लौह धातु भी विद्यमान है। कहने का तात्पर्य है कि हमारा शरीर भी चुम्बकीय है और पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति से प्रभावित होता है। वास्तु के इसी सिद्धांत के कारण यह कहा जाता है कि दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए। इस प्रकार सोते समय हमारा शरीर ब्रह्मांड से अधिक से अधिक शक्ति को ग्रहण करता है और एक चुम्बकीय लय में सोने की स्थिति से मनुष्य अत्यंत शांतिप्रिय नींद को प्राप्त होता है और सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करता है।
वास्तुशास्त्र में पृथ्वी (मिट्टी) का निरीक्षण, भूखण्ड का निरीक्षण, भूमि आकार, ढलान और आयाम आदि का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। मात्र पृथ्वी तत्व ही एक ऐसा विशेष तत्व है, जो हमारी सभी इंद्रियों पर पूर्ण प्रभाव रखता है।

जल
पृथ्वी तत्व के बाद जल तत्व अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। इसका संबंध हमारी ग्राह्य इंद्रियों, स्वाद, स्पर्श, दृष्टि और श्रवण से है। मानव के शरीर का करीब सत्तर प्रतिशत भाग जल के रूप में और पृथ्वी का दो तिहाई भाग भी जल से पूर्ण है। पुरानी सभ्यताएं अधिकतर नदियों और अन्य जल स्त्रोतों के समीप ही बसी होती थी। वास्तुशास्त्र जल के संदर्भ में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे कि कुएं, तालाब या हैडपंप की खुदाई किस दिशा में होनी चाहिए, स्वच्छ और मीठा पानी भूखंड के किस दिशा में मिलेगा, नगर को या घर को पानी के स्त्रोत के सापेक्ष में किस दिशा में रखा जाए या पानी की टंकी या जल संग्रहण के साधन को किस स्थान पर स्थापित किया जाए इत्यादि। पानी के भंडारण के अलावा पानी की निकासी, नालियों की बनावट, सीवर और सेप्टिक टैंक इस प्रकार से रखे जाएं, जिससे जल तत्व का गृहस्थ की खुशहाली से अधिकतम सामंजस्य बैठे।

अग्नि
सूर्य अग्नि तत्व का प्रथम द्योतक है। सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड की आत्मा है, क्योंकि सूर्य उर्जाऔर प्रकाश दोनों का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है। रात्रि और दिन का उदय होना और ऋतुओं का परिवर्तन सूर्य के संदर्भ में पृथ्वी की गति से ही निर्धारित होता है। अग्नितत्व हमारी श्रवण, स्पर्श और देखने की शक्ति से संबंध रखता है। सूर्य के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है। सूर्य की ऊर्जा रश्मियां और प्रकाश सूर्योदय से सूर्यास्त तक पल-पल बदलता है। उषाकाल का सूर्य सकारात्मक शक्तियों का प्रतीक है और आरोग्य वृद्धि करता है। भवन का पूर्व दिशा में नीचा रहना और अधिक खुला रहना सूर्य की इन प्रभावशाली किरणों को घर में निमंत्रित करता है। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में ऊंचे और बड़े निर्माण दोपहर बाद के सूर्य की नकारात्मक और हानिकारक किरणों के लिए अवरोधक हैं।
सूर्य की किरणों का विभाजन (7+2) नौ रंगों में किया जा सकता है। सर्वाधिक उपयोगी पूर्व में उदित होने वाली परा-बैगनी किरणें हैं, जिसका ईशान कोण से सीधा संबंध है। इसके बाद सूर्य के रश्मि-जाल में बैगनी, गहरी नीली, नीली, हरी, पीली, संतरी, लाल तथा दक्षिण-पूर्व में रक्ताभ किरणों में विभक्त किया जा सकता है। सूर्य रश्मिजाल के परा-बैगनी और ठंडे रंग स्वास्थ्य पर अत्यंत लाभदायक और शुभ प्रभाव छोड़ते हैं। इसलिए ईशान कोण में अधिक से अधिक जगह खाली रखी जानी चाहिए। जब इन किरणों का संबंध जल से होता है, तो यह और भी बेहतर है। इसलिए पानी के भंडारण के लिए ईशान कोण का प्रयोग करने का सुझाव दिया जाता है।
उत्तरपूर्व में दीवार बनाना या इस तरफ शौचालय इत्यादि बनाना भी भवन की सबसे पवित्र दिशा को दूषित करता है। इस दोष से इस दिशा का सही उपयोग और लाभ नहीं मिल पाता, बल्कि घर में कलह और बीमारी के करण बन सकते हैं।
उषाकाल के सूर्य की परा-बैगनी किरणें शरीर के मेटाबॉलिज़्म को संतुलित रखते हैं। भारतीय जीवन में सूर्य नमस्कार और सुबह सूर्य को जल चढ़ाने जैसे उपाय परा-बैगनी किरणों के शुभ प्रभावों में वृद्धि करने वाले होते हैं। सूर्य की किरणें जल में से पारदर्शित होकर और भी सशक्त और उपयोगी हो जाती हैं।
दोपहर बाद और शाम के सूर्य की रक्ताभ किरणें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और इनका बहिष्कार अति उत्तम है। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में ऊंचे और बड़े वृक्ष लगाए जाने चाहिए, जिससे दूषित किरणों से बचाव हो सके या यह किरणें परावर्तित हो सके।

वायु
वायु जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी तत्व है। वायु का हमारी श्रवण और स्पर्श इंद्रियों से सीधा संबंध है। पृथ्वी और ब्रह्मांड में स्थित वायु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसों का सम्मिश्रण है। जीवन के लिए इन सभी गैसों की सही प्रतिशतता, सही वायुमंडलीय दबाव और आर्द्रता का सही अनुपात होना आवश्यक है। वास्तुशास्त्र में जीवनदायिनी वायु के शुभ प्रभाव के लिए दरवाज़े, खिड़कियां, रोशनदानों, बालकनी और ऊंची दीवारों को सही स्थान और अनुपात में रखना बहुत आवश्यक है। इसी के साथ घर के आसपास लगे पेड़ और पौधे भी वायुतत्व को संतुलित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आकाश
वास्तुशास्त्र में आकाश को एक प्रमुख तत्व की संज्ञा दी गई है। पाश्चात्य निर्माण कला में अभी तक आकाश को एक प्रमुख तत्व की मान्यता नहीं दी गई थी, इसलिए वास्तुशास्त्र आधुनिक और प्राचीन निर्माण कला में सबसे श्रेष्ठ है। आकाश अनंत और असीम है, इसका संबंध हमारी श्रवण शक्ति से है। एक घर में आकाश तत्व की महत्ता घर के मध्य में होती है। घर में प्रकाश और ऊर्जा के स्वछंद प्रवाह के लिए इसे हवादार और मुक्त रखा जाना चाहिए। आकाश तत्व में अक्रोधकता घर या कार्य स्थल में वृद्धि में बाधक हो सकती है। घर या फैक्ट्री को या उसमें रखे सामान को अव्यवस्थित ढंग से रखना आकाश तत्व को दूषित करना है। मकान में अपनी ज़रूरत से अधिक अनावश्यक निर्माण और फिर उन फ्लोर या कमरों को उपयोग में न लाना, बेवजह के सामान से कमरों को ठूंसे रखना भवन के आकाश तत्व को दूषित करता है। नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सुझाव है कि भवन में उतना ही निर्माण करें जितना आवश्यक हो।
वास्तुशास्त्र भवन में पंचमहाभूतों का सही संतुलन और सामंजस्य पैदा कर घर के सभी सदस्यों के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदा करता है। आजकल घरों में साज-सज्जा के बेहतरीन नमूने और अत्याधुनिक उपकरणों की कोई कमी नहीं पाई जाती। अगर कमी होती है, तो प्राकृतिक प्रकाश, वायु और पंचतत्वों के सही संतुलन की। एक घर में सही स्थान पर बनी एक बड़ी खिड़की की उपयोगिता कीमती और अलंकृत साजसज्जा से कहीं ज्यादा है।
वास्तुविद्या मकान को एक शांत, सुसंस्कृत और सुसज्जित घर में तब्दील करती है। यह घर परिवार के सभी सदस्यों को एक हर्षपूर्ण, संतुलित और समृद्धि जीवन शैली की ओर ले जाता है।